भारतीय क्रिकेट को हमेशा से कई बेहतरीन खिलाड़ी मिले हैं। किसी भी खिलाड़ी के रिटायर होने के बाद भी भारत ए टीम को उस खिलाड़ी की कमी महसूस नहीं हुई। भारतीय टीम का प्रदर्शन हमेशा से ऊपर ही जाता रहा है और आने वाले समय में ऊपर ही जाता रहेगा। सुनील गावस्कर सचिन तेंदुलकर महेंद्र सिंह धोनी विराट कोहली जितने नाम लिए जाए उतनी कम है। इन सभी ने भारत के लिए कई मैच खेले और भारत का प्रदर्शन से कहीं मैच जीता है। भारतीय क्रिकेट इन सभी के योगदान को कभी नहीं भुला सकता। पर इन खिलाड़ियों के विपरीत कुछ खिलाड़ी ऐसे भी थे जिन्हें अपने सिर्फ एक मैच के प्रदर्शन के लिए याद रखा जाएगा और यह खिलाड़ी अपने बाकी करियर में कुछ खास नहीं कर पाए। आज हम उन्हीं पांच खिलाड़ियों की बात करेंगे-
जोगिंदर शर्मा
सबसे पहले बात करते हैं भारत के पूर्व तेज गेंदबाज जोगिंदर शर्मा की। आप में से शायद सभी ने इन्हें बखूबी जानते होंगे। यह वही खिलाड़ी हैं जिन्हें एम एस धोनी ने 2007 विश्व कप फाइनल में आखरी ओवर में गेंद डालने के लिए कहा था और उन्होंने बखूबी लक्ष्य का बचाव भी किया था। हम सभी उन्हें बस उस मैच के लिए ही जानते हैं। आप में से बहुत लोग सोच रहे होंगे कि एक गायब कहां हो गए। तो आपको जानकर हैरानी होगी कि जोगिंदर शर्मा इस समय हरियाणा में ही डीएसपी के पद पर हैं और भारत की सेवा कर रहे हैं । उस मैच के बाद से ही जोगिंदर भारत की तरफ से कोई और मैच ना खेल सके। वे अंतरराष्ट्रीय पेट में भारत के लिए मात्र 5 विकेट ही ले पाए।
अजय रात्रा
यह बात है सन 2000 की भारत को नयन मोंगिया के संन्यास के बाद किसी अच्छे विकेटकीपर बल्लेबाज की तलाश थी। 2001-2002 के बीच में ही भारत ने छह अलग-अलग विकेटकीपर हम को खिला कर देखा। पर कोई भी अच्छा प्रदर्शन करके टीम में जगह बनाने में नाकाम रहा। तभी भारत ने मौका दिया युवा विकेटकीपर अजय रात्रा को। 2002 में इन्होंने इंग्लैंड में इंग्लैंड के खिलाफ डेब्यू किया इसके बाद उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ एंटीगा टेस्ट में भारत के लिए शानदार शतक लगाया। अजय रात्रा भारत की सबसे कम उम्र में शतक लगाने वाले विकेटकीपर बन गए। भारत को जिस विकेटकीपर की तलाश थी वह से मिल चुका था। पर बदकिस्मती से ऐसा नहीं हुआ। अजय उस मैच के बाद भारत के लिए निरंतरता से अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए और इन्हें भारतीय टीम से बाहर कर दिया गया। इसके बाद भी विकेटकीपर की तलाश जारी रही और भारत को मिला एक ऐसा कोहिनूर हीरा जिसे हम सभी महेंद्र सिंह धोनी के नाम से जानते हैं। उसके बाद जो हुआ उसे तो आप बखूबी जानते हैं।
दिनेश मोंगिया
नयन मोंगिया के बारे में तो आपने जान लिया। अब बात करते हैं इनके भाई के बारे में दिनेश मोंगिया। दिनेश मोंगिया ने भारत के लिए पदार्पण किया था 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ। लेकिन जिस मैच के लिए नहीं याद रखा जाएगा अवस्था जिंबाब्वे के खिलाफ। उस मैच में दिनेश मोंगिया ने 159 रन की बेहतरीन पारी खेली थी। इसी से इन्होंने भारतीय टीम में अपनी जगह पक्की कर ली थी और इन्हें 2003 विश्वकप टीम में वीवीएस लक्ष्मण की जगह चुन लिया गया था। पर यह अपने प्रदर्शन को जारी नहीं रख सके। जिंबाब्वे के खिलाफ उस मैच के बाद इन्होंने भारत के लिए 42 मैच खेले पर सिर्फ 703 रन ही बना सके।
स्टुअर्ट बिन्नी
अगला नाम इस लिस्ट में आता है 1983 विश्व कप टीम के सदस्य रोजर बिन्नी के सुपुत्र स्टूअर्ट बिन्नी का। इनका नाम सुर्खियों में आया 2014 में। स्टुअर्ट बिन्नी ने बांग्लादेश के खिलाफ वनडे मैच में गेंदबाजी करते हुए 4 रन देकर छह के झटके। वह मैच इसलिए भी खास था क्योंकि भारत सिर्फ 105 रनों का लक्ष्य का बचाव कर रहा था। स्टुअर्ट बिन्नी की दमदार प्रदर्शन ने भारत को हारा-हारा मैच भी जीता दिया। पर उस प्रदर्शन के बाद स्टुअर्ट बिन्नी ऐसा कुछ खास नहीं कर सके जो इनकी भारतीय टीम में जगह बनाता हो। यह भारत के लिए 14 वनडे में मात्र 230 रन बना सके और सिर्फ 20 विकेट ले सके।
नरेंद्र हिरवानी
आखरी नाम इस लिस्ट में आता है भारतीय स्पिनर नरेंद्र हिरवानी का। यह भारत के कुछ बेहतरीन स्पिनरों में शामिल है। इन्होंने अपना पहला मैच वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला। इन्होंने ऐसा प्रदर्शन किया जिसकी किसी को भी उम्मीद नहीं थी। नरेंद्र ने उस मैच में वेस्टइंडीज की दोनों पारियों में मिलाकर 16 विकेट झटके। एक टेस्ट में 16 विकेट किसी भी भारतीय गेंदबाज का एक टेस्ट में सबसे ज्यादा विकेट है। पर बदकिस्मती से यह भी बाकी खिलाड़ियों की तरह अपनी काबिलियत को बाकी टेस्ट मैचों में नहीं दिखा पाए। उस मैच के बाद नरेंद्र हिरवानी ने 16 टेस्ट मैच खेले और मात्र 50 विकेट झटक पाए। उसके बाद इन्हें कभी भारतीय टीम में मौका नहीं मिला।
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